वेद हैं विज्ञान के समर्थक।
श्लोक : ।। उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत।। क्षुरस्य धारा निशिता दुरत्यया दुर्गं पथस्तत्कवयो वदन्ति। ।14।। -कठोपनिषद् (कृष्ण यजुर्वेद) अर्थ : (हे मनुष्यों) उठो, जागो (सचेत हो जाओ)। श्रेष्ठ (ज्ञानी) पुरुषों को प्राप्त (उनके पास जा) करके ज्ञान प्राप्त करो। त्रिकालदर्शी (ज्ञानी पुरुष) उस पथ (तत्वज्ञान के मार्ग) को छुरे की तीक्ष्ण (लांघने में कठिन) धारा के (के सदृश) दुर्गम (घोर कठिन) कहते हैं। **** वेद कहते है ' सचेत होवो' किससे सचेत? अज्ञान और झूठी समझ के प्रति सजग हो, और ज्ञान प्राप्त करो। ज्ञान कहाँ है? ज्ञान एक मार्ग पर चलकर प्राप्त होता है जो छुरी की धारा जैसा है (अर्थात थोड़ी भी सजगता हटी तो अज्ञान या झूठ प्रभावित कर सकता है।) अतः ज्ञान उनके पास है जो लोग सत्य की खोज के इस मार्ग पर सजगता से चलते है । दो बातें इसमे निकलती है एक है ज्ञान एक खोज प्रक्रिया का हिस्सा है। और दूसरा ज्ञान का वाहक इंसान ही होता है । अब हम विज्ञान को लें। विज्ञान भी बिल्कुल इन्ही बातों का समर्थक है। ज्ञान इंसान को प्राप्त होता है (दैवीय नही, ज्ञानेंद्र...