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अगस्त 7, 2020 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

भारत माता की जय बोलने के विचार की प्रासंगिकता: एक विश्लेषण

अपने देश को अपनी माँ माननेे में क्या बुरा है?  इसमें क्या गलत है की भारत माता की जय बोली जाये? माँ के लिए सब बराबर होते हैं । भारत माता ने अपने हर बच्चे के लिए दाना पानी का इंतजाम किया हैं।  जब हम कहतें हैं कि भारत देश हमारी माँ है तो ये स्पष्ट है की सब नागरिको का इसके संसाधनों पर बराबर का अधिकार हैं और सब बच्चे बराबर है। इस विचार से शायद किसी को दिक्कत न होगी। कम्युनिस्ट मुसलमान, दलित या नार्थ ईस्ट सबको ये बात मान्य होगी।  और इसलिए इन सब को भारत माता की जय बोलनी चाहिये। पर क्या ये संभव है कि संसाधनों को सभी नागरिको  में बराबर बांटा जा सकता है? शायद नहीं।  क्यों? ...... एक मत ये भी है की माँ के सब बच्चे बराबर क्षमता के नहीं होते अतः कभी भी बराबर नहीं हो पाएंगे।  अगर जबरदस्ती सब संसाधन बराबर बाँट भी दिए जाएँ तो भी कुछ समय में पायेंगे कि कुछ लोग उसे संजोएंगे और बढ़ाएंगे, जबकि कुछ अन्य लोग इसे खो देंगे। ऐसा सदा ही होता है और जानवरों में भी होता है अतः शायद असमानता प्रकृति की ही देन है। बस चूँकि माँ/देश जीवन दायनी हैं अतः बच्चों को कृतज्ञता दिखानी चाहिये और माँ ...

भारतीय सामाजिक संगठन का मनोविज्ञान और हाल की लोकतान्त्रिक क्रांति : घृणा का प्रबंधन

 'कूड़ा सब के घर में पैदा होता है! अपने कूड़े से मन में उतनी घिन्न पैदा नहीं होती जितनी पडोसी  के कूडे से पैदा होती है। परंतु वो स्थान जहाँ सारे मोहल्ले का कूड़ा पड़ता है  सभी मोहल्ले वालों के लिए एक सामूहिक घृणा का केंद्र होता है। जिसके बारे में बात करते हुए पूरे मोहल्ले में एकता सी दिखाई देती है। घृणा से भरी हुई।' ये बात प्रथमद्रष्टया आपको बहुत महत्वपूर्ण न लगे परंतु ये भारतीय सामाजिक जीवन के मनोविज्ञान का मूल विचार है। ये बात अजीब या फिर दुराग्रही लग सकती है परंतु इस के तार्किक आधारों को समझने के लिए हमे भारतीय समाज के इतिहास  में झांकना पड़ेगा। इतिहास (1) भारतीय समाज में जातियों के उद्भव के साथ इसके मूल में विद्यमान एक छुआछूत का भाव बहुत स्पष्ट रूप से प्रदर्शित हुआ। ये छुआछूत या घृणा न सिर्फ समाज में संस्थागत हुई अपितु लोगों के मनोविज्ञान का भी अभिन्न अंग बनी। हर जाति के लोग दूसरी जाति के लोगों से घृणा करते हुए भी एक व्यवहार का सम्बन्ध बनाये रखते। एक जजमानी या जीवन यापन का सम्बन्ध। जातियों में एक स्पष्ट पदानुक्रम तो था ही पर उनमें एक असममित (asymmetrical) वर्गीक...

पढ़े -लिखे वर्ग की 'सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट' आइडियोलॉजी: सामाजिक कैंसर का इशारा

  पढ़े लिखो के बीच बैठिए तो अक्सर सुनने को मिलेगा की जीवन 'सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट' (Survival of fittest) के सिद्धांत पर आधारित है। वहीं यह भी स्पष्ट होगा कि  'वही व्यक्ति जिंदा रहेगा जो फिट है बाकी सब मर जाएंगे।' परंतु ये डार्विन की थ्योरी का गलत प्रयोग या व्याख्या है। पहला, डार्विन ने 'सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट' की बात किसी एक जीव के संदर्भ में नही कही अपितु एक प्रजाति के संदर्भ में कही है।अर्थात ये प्रजाति की फिटनेस पर तो बात करता है पर प्रजाति के किसी  एक, दो, या कुछ जीवो के बारे में कुछ नही बताता। दूसरा, ये जंगल मे प्रजातियों के सर्वाइवल के बारे में है, जहां खुद को नियमित या नियंत्रित करने के व्यवहार की कोई मान्यता नही है अपितु हर हाल में और किसी भी प्रकार जीवित रहने की स्थिति के बारे में है। इंसानी जीवन सामान्यतः इससे बिल्कुल भिन्न है। किसी एक इंसान का सर्वाइवल अन्य इंसानों के सहयोग पर बहुत अधिक निर्भर है। या संक्षिप्त रूप से कहें तो इंसान का सर्वाइवल, व्यवस्था, या अन्य इंसानों से संबंधों के तानेबाने, पर बहुत अधिक निर्भर है। (जो एक व्यक्ति के सर्वाइवल ऑफ फिटे...

बी पॉजिटिव' की नकारात्मकता: एक समालोचना

बी पॉजिटिव! बी पॉजिटिव!! अक्सर लोग एक दूसरे को सलाह देते रहते हैं। सामान्यतः वो ये कह रहे होते है कि वातावरण में बड़ी नकारात्मकता है और ये वातावरणीय नकारात्मकता हमारे मन मे भी नकारात्मक विचार पैदा कर सकती है परंतु हमे उन नकारात्मक विचारों से बचने की आवश्यकता है चूंकि मूलतः नकारात्मक होकर हमें फायदा कम होता है और नुकसान ज्यादा। कैसे? नकारात्मकता हमे विध्वंस की प्रेरणा देती है, जिस के पालन से वातावरण में मौजूद नकारात्मक तत्वों की समाप्ति तो संभव है, परंतु वो रास्ता खर्चीला ज्यादा है। फिर, चूंकि हम समूह और समाज में रहते हैं जहाँ परस्पर निर्भरताएँ अधिक है और इसमें कई बार चीजें उपलब्ध तो होती है, परंतु विलंब से, इसलिए सकारात्मक रहकर हम कम शक्ति लगा कर, और खुद को नुकसान होने की कम संभावनाओं के साथ, चीजें प्राप्त कर सकते है, अतः कालांतर में ये 'बी पॉजिटिव' अच्छा है। ये पाजिटिविटी यूं भी अच्छी है क्योंकि समाज मे अन्तरनिर्भर्ताओं के चलते अक्सर बहुत से ऐसे लोगों से वास्ता पड़ता है जो अनजान होते हैं परंतु काफी महत्वपूर्ण होते हैं। ऐसे लोगों से थोडा भी नकारात्मक व्यवहार बहुत नुकसान कर ...