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भारत के अभिजात्य (मध्यम) वर्ग की बदली चाल: देश के वर्तमान संकट का आधार।

नोट:  भारत का अभिजात्य वर्ग  अब तक सामाजिक रूप से अपरिवर्तनीय  है (उसकी संरचना में बड़े परिवर्तन नही हुए हैं)  हाँ,जातियों के नाम जरूर आएंगे, पर इस लेख को (सामाजिक-राजनीतिक) ढांचे की समझ के रूप में देखा जाए। जातियों की चिरपरिचित समझ के चश्मे से अगर इसे देखा गया तो इसका मूल संदेश खो जाएगा। **** भारत के समाज मे आधुनिक काल से पहले अधिकतर दो ही स्पष्ट वर्ग रहे हैं उत्पीड़क और उत्पीड़ित।  उत्पीड़क वर्ग का आर्थिक और सामाजिक ढांचे पर  वर्चस्व तो था ही, ये वर्ग  सांस्कृतिक, धार्मिक, और बौद्धिक रूप से आम जन के बीच एक्टिव भी था और इसी के चलते नकारात्मक रूप (संसाधनों पर कब्जे) से प्रभावित करने के अलावा सकारात्मक रूप से भी यह वर्ग समाज को नेतृत्व प्रदान करता था (जीवन मरण के झूठे सच्चे ज्ञान द्वारा)। इस उत्पीड़क अभिजात्य वर्ग के पास सेनाएं नही थी। वो राजाओं के पास थी। राजा नित बदलते रहे, और अभिजात्य वर्ग हर नए राजा के प्रति पूर्ण समर्पण भाव दिखा राजाओं को पक्ष में करता रहा।  किसी भी राजा के लिए ये अच्छी स्थिति थी कि वो समाज को इस अभिजात्य वर्ग की मदद से मैनेज कर सक...