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दक्षिणपंथ की प्रकृति। एक विचार।

बिना स्थापित विषयों द्वारा दी गयी व्याख्याओं में जाये बात शुरू की जाए। दक्षिणपंथ या रइटिसम के मूल में  सत्ता या समाज पर कब्जा  कर अपने हितों का पोषण करने की भावना है।  ये एक व्यक्ति से शुरू हो कर एक समूह की भावना बन सकती है।(इस पर आगे चर्चा करेंगे)।  इस लिहाज से सारे राजा, और छत्रप रइटिस्ट है। इतिहास में यही भावना सत्ता के केंद्र में रही है, और आप हरिश्चन्द्र या कुछ इक्का दुक्का राजा को छोड़ दें तो यही भावना मूल है। एक व्यक्ति, या राजा, सत्ता पर कब्जे के लिए युद्ध करता और जो साथ देते वो सब सत्ता हासिल होने पर उस भोग के भागीदार होते। राजा इन सब मे सर्वाधिक शक्तिशाली होता। जो सत्ता पर कब्जा बनाये रखने के लिए अपनी सेना को राज्य से प्राप्त राजस्व से और पुष्ट करता रहता। जो इस पूरे प्रयोग या संगठन का हिस्सा न बन पाते वो नए नेता के साथ मिलकर ऐसा ही सब प्रयोजन करते कि वे सत्ता पर काबिज हो सके। और इसी प्रकार 'एक राजा से दूसरे राजा', इतिहास भरा पड़ा है। इस पूरे सत्ता इतिहास में जनता का उपकार कभी मूल विषय नही रहा। देश और समाज के बहुसंख्यक लोगों को इस रइटिसम से हो रहे नुकसान से दु...