प्राइड ले लो प्राइड। ... (लघु कथा)
' प्राइड ले लो प्राइड। सवा किलो प्राइड।...' हरकारा चिल्ला रहा था। दिमाग घूमा, अरे!! प्राइड कितना मुश्किल होता है आम जिंदगी में, लाख जतन करते है तब एक नौकरी मिलती है, मन प्राउडी होने को होता है, तभी पता लगता है कि सा.. पड़ोसी तो बहुत बड़ी नौकरी पा गया। बस सब हवा निकल जाती है, प्राइड महसूस ही नही हो पाता। इस सब धुंदली सी विचारधारा में बह ही रहा था कि हरकारे की आवाज ने फिर ध्यान खींच लिया। हरकारा शायद कोई फिलॉस्फर ही था। वो चिल्ला रहा था.. '..एक बावले ने कुछ एक्सपेरिमेंट करे थे सच्चाई पर। वो लोगो को और इस देश को दुनिया जहान की बीमारियां दे गया । लोग सारी जिंदगी मेहनत करते, बच्चों को पढ़ाते, घर बनाते, जब सब चीजों से मुक्त हो जाते, तब थोड़ा बहुत प्राइड का एहसास कर पाते। वो भी हल्के वाला। ऐसा जो किसी को अखरे नही। क्यों?? क्योंकि उस बावले के प्रभाव में लोग, सत्य की खोज, प्रेम और भाईचारे पर बहुत जोर देते थे। अब आप ही बताओ भला प्राइड इन सब बातों के बीच कैसे महसूस हो सकता है। प्राइड तो वो अंतिम सुख है जो हमे विशेष बनाता है, सबसे अलग, सबसे नि...