(सर्वशक्तिमान में)आस्था क्यों?
आस्था के साथ 'क्यों' लगते ही इसे एक 'गलत सवाल' बताया जा सकता है। परंतु ये 'क्यों' उस वाशिंग पाउडर की तरह है जो थोड़ा सा ही सब गंदगी धो डालता है और निर्मल अंत देता है। अर्थात शुद्ध आस्था । आस्था को सामान्यतः भगवान में विश्वास से जोड़कर देखा जाता है। इसी से जुड़ा है आस्तिक, जो मानता है कि 'ये संसार भगवान का बनाया हुआ है अतःव हम इंसानो को भगवान की उपासना करनी चाहिए।' बिना किसी क्लासिक आस्थावान के सामान्यतः दिए गए तर्कों में जाये इसकी पड़ताल करें। सभी लोग ये मानते है कि भगवान या प्रकृति ही एकमात्र सत्य है और उसके निर्माण पूर्ण है। इसको ऐसे भी कह सकते है कि प्रकृति के अपने सिद्धान्त है जिनमे त्रुटियों की गुंजाईश नहीं है और जो सार्वभौमिक है। तो चाहे उपासना करे या न करें, भगवान या प्रकृति के जीवन पर प्रभाव का इससे कोई सम्बन्ध नहीं होना चाहिए। सारे जीव और प्रकृति के क्रिया कलाप ऐसे ही उपासना से अप्रभावित घटित होते है। कोई वैज्ञानिक, या कोई नास्तिक भी, भगवान या प्रकृति के इस रूप में पूर्ण विश्वास करता है और इस तरीके से वो आस्थावान है, एक निश्चित सिद्धान्त में ,...