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देश की दुर्दशा और मेरा सकारात्मक व्यक्तित्व

देश मे आम आदमी के साथ क्या 2 हो रहा है आप बताते रहते है पर मुझे ये प्रासंगिक नही लगता।   मुझे तो बस अपने देश से प्यार है, और मैं इसे महान देखना चाहता हूं। व्यवस्था की अव्यवस्था का आंकलन मुझे सुहाता नही है, अव्यवस्था के दोषी की पहचान जैसी नकारात्मक बात मेरे लिए अर्थपूर्ण नही है, और सरकार के कर्मो के बारे में तो में बिल्कुल चुप ही रहना पसंद करता हूँ। हाँ, अगर जनता की लापरवाही पर बात करनी चाहो, तो मेरे पास भरपूर तर्क है और मैं जोरदार दावे कर सकता हूँ।  असल मे मेरा जीवन मेरे भाग्य से चलता है, और मेरे रिश्तेदारों और जानकारों का कॅरोना पीड़ित हो जाना या कोई और बीमारी हो जाना और उन्हें स्वास्थ सेवा न मिल पाना सब उनके पिछले जन्मों के कर्म है (शायद मैं उनके पूर्व जन्म के कुकर्मो को जान ही न पाता अगर ये मौका न आता)। इसमे सरकार या राज्य की कोई भूमिका मुझे नजर नही आती है। में अपनी निजी जिंदगी के निर्णयों में जरूर काफी दिमाग लगाता हूँ, अच्छा और बुरा सब सोचता हूँ। समाज और वातावरण के प्रभाव मेरे अधिकतर निर्णयों के निर्धारक होते है। परंतु, देश और समाज के बारे में सोचते हुए मैं बस दिल से ...