बी पॉजिटिव' की नकारात्मकता: एक समालोचना

बी पॉजिटिव!

बी पॉजिटिव!!

अक्सर लोग एक दूसरे को सलाह देते रहते हैं।

सामान्यतः वो ये कह रहे होते है कि वातावरण में बड़ी नकारात्मकता है और ये वातावरणीय नकारात्मकता हमारे मन मे भी नकारात्मक विचार पैदा कर सकती है परंतु हमे उन नकारात्मक विचारों से बचने की आवश्यकता है चूंकि मूलतः नकारात्मक होकर हमें फायदा कम होता है और नुकसान ज्यादा।

कैसे?
नकारात्मकता हमे विध्वंस की प्रेरणा देती है, जिस के पालन से वातावरण में मौजूद नकारात्मक तत्वों की समाप्ति तो संभव है, परंतु वो रास्ता खर्चीला ज्यादा है। फिर, चूंकि हम समूह और समाज में रहते हैं जहाँ परस्पर निर्भरताएँ अधिक है और इसमें कई बार चीजें उपलब्ध तो होती है, परंतु विलंब से, इसलिए सकारात्मक रहकर हम कम शक्ति लगा कर, और खुद को नुकसान होने की कम संभावनाओं के साथ, चीजें प्राप्त कर सकते है, अतः कालांतर में ये 'बी पॉजिटिव' अच्छा है।
ये पाजिटिविटी यूं भी अच्छी है क्योंकि समाज मे अन्तरनिर्भर्ताओं के चलते अक्सर बहुत से ऐसे लोगों से वास्ता पड़ता है जो अनजान होते हैं परंतु काफी महत्वपूर्ण होते हैं। ऐसे लोगों से थोडा भी नकारात्मक व्यवहार बहुत नुकसान कर सकता है।

क्या सकारात्मकता का भी कोई नकारात्मक पक्ष हो सकता है?

ये बात थोड़ी अजीब तो लगती ही है, परंतु सत्य है।

गौर से देखें तो ये सारी पाजिटिविटी एक रणनीति का हिस्सा है और नकली है, प्राकृतिक नही है, अतः घोर नकारात्मकता लिए हुए है।
कैसे?
जब हम अपने आप से कहते हैं कि हमे सकारात्मक रहना है चाहे वातावरण में कितनी भी नकारात्मकता क्यों न हो, तो हम रणनीति के तहद एक बनावटी व्यवहार की तैयारी कर रहे होते है।
एक्टिंग करना वहां आसान है जहाँ चीजें हमारे जज्बात से जुड़ी नही होती। परंतु जहां जीवन-मरण, लाभ-हानि जुड़ा होता है ऐक्टिंग एक मुश्किल काम है, और इस मुश्किल की गंभीरता और बढ़ जाती है जब हमे इसी प्रकार का प्रबंधन हर समय करना पड़ता है।
वो सारी वातावरणीय नकारात्मकता जिसे हम बड़ी शिद्दत से महसूस कर रहे होते है उसे ये नकली सकारात्मकता हल नही करती बस छिपाती है, कुछ कुछ वैसे ही जैसे मेकअप चेहरे में रौनक नही लाता सिर्फ रूखापन छिपाता है।
असल मे इस प्रकार हम वातावरण की सारी नकारात्मकता का संग्रह अपने भीतर कर रहे होते हैं और उसके संमान्यतः बाहर निकलने के रास्तों को बंद कर रहे होते है। अतः नकारात्मकता हमारे अंदर बहुत ही घुट जाती है,और विस्फोटक भी।  और उसके बाद जो होता है वो कुछ 2 एटम बम जैसा होता है। सब कुछ तबाह कर देने वाला। चाहे शरीर हो या मन हो या मस्तिष्क हो, सब खत्म।
जो हमे प्राकृतिक रूप से महसूस होता है उस पर हम पाजिटिविटी का लेप चढ़ा देते है, जो हमारे दिल से नहीं चिपकता और एक प्रकार का स्वतंत्र अस्तित्व बना लेता है और वो हमारे नियंत्रण में नही होता।

ये सब इतना बड़ा नुकसान न करे अगर पूरा का पूरा समाज ही इस 'बी पॉजिटिव' के नकलीपन से ग्रसित न हो तो। अर्थात, अगर ये नकली सकारात्मकता समाज की मान्यताओं, मानकों आदि का इस प्रकार हिस्सा न बन गया हो कि ये घोर अपराधबोध पैदा करे एक ऐसे व्यक्ति में जो नकारात्मकता विचारों को अभिव्यक्त करे ।

सामान्यतः समाज के निर्विघ्न संचालन के लिए नकारात्मकता की अभिव्यक्ति पर कुछ रोक आवश्यक है। परंतु जहां सरल समाजों में नकारात्मकता की अभिव्यक्ति को एक निजी समूह में मान्यता मिली रहती है, जटिल समाजों में व्यक्तिवाद बढ़ रहा है, अतः निजी समूह उतने आत्मीय नहीं रह गए है, और औपचारिकता और कागजी बातें ज्यादा महत्वपूर्ण हो गयी है, ऐसे में नकारात्मकता की अभिव्यक्ति के रास्ते बाधित हो रहे हैं। और ये समस्या गंभीर हो रही है।

नए उभरे सोशल मीडिया से ये उम्मीद की गई थी कि ये भौतिक दूरियों और व्यस्तता से निजी संबंधों में आई ठंडक को दूर करेगा और इस प्रकार वृहद समाज मे 'बी पॉजिटिव' व्यवहार से पैदा हुई नकारात्मकता के प्रबंधन में सहायक होगा। परंतु असल मे इसका प्रभाव अपेक्षित परिणाम से इतर हुआ है।

सोशल मीडिया सहृदयता को बढ़ावा देने का माध्यम न बन सका, अपितु उसने प्रदर्शनियता, या हमारे पॉजिटिव प्रोफाइल के प्रदर्शन के काम को ही आगे बढ़ाया, और ये हमारे अंदर भर रही नकारात्मकता, या हमारे नकारात्मक पक्षों, को छिपाने के ही काम आया। सोशल मीडिया पर सब खुश हैं और अमीर हैं, ये इस बात की तस्दीक करता है।

सोशल मीडिया ने हमारी पाजिटिविटी-नेगेटिविटी के प्रबंधन में दो नए आयाम और जोड़ दिए हैं।

1.  कृपया गौर कीजिये, जो व्यक्ति बताता है की 'पॉजिटिव रहना चाहिए' स्वाभाविक तौर पर अन्य लोगों से ज्यादा सकारात्मक माना जाता है।

और यही वो पक्ष है जिसने सोशल मीडिया पर पाजिटिविटी के संदेशों की बाढ़ ला दी है।  इन संदेशों के माध्यम से वही सब प्रभाव पैदा करने का प्रयास होता है जैसे वृहद समाज मे नकली पॉजिटिव व्यवहार से हम चाहते है। अतः सोशल मीडिया भी उसी नकली पाजिटिविटी के प्रबंधन का एक और माध्यम बन के उभरा है।

2. सोशल मीडिया नकारात्मकता के प्रबंधन में सहायक तो हुआ पर बिल्कुल एक अतिसार (catharsis)  के रूप में।
राजनैतिक और सामाजिक समूहों के प्रति तीव्र, तार्किकता से विरत या अंधी घृणा का जोरदार प्रदर्शन एक तरह से आधुनिक एकांकी सभ्य (सौम्य व्यवहार पर आधारित) जीवन मे इकठ्ठी हो रही नकारात्मकता का अतिसार (दस्त) ही कहा जाए तो कुछ गलत न होगा।
चूंकि ऐसी नकारात्मकता के प्रदर्शन को सोशल मीडिया पर राजनीतिक-सामाजिक गुरुओं ने (रेडीमेड पोस्टों के द्वारा) एक सामाजिक मान्यता प्रदान करवा दी और नकारात्मकता का एक दिशा में अतिसार संभव हो पाया।

इस प्रकार आज हम एक नए स्तर पर सकारात्मकता-नकारात्मकता का प्रबंधन कर पा रहे है।
हां, नकारात्मकता-सकारात्मकता का रूपरंग बदला है और उनके प्रति हमारा व्यवहार भी।
आज आम आदमी सकारात्मक है, और उस हद तक कि रिश्वतखोर, दबंग, और ठगों का प्रतिरोध नही करता, अपितु सकारात्मक हो बच निकलता है,भगवान से प्रार्थना करता है और सारी इकठ्ठी हुई नकारात्मकता को सोशल मीडिया पर बहती घृणा की धारा में विसर्जित कर देता है। शायद, यही सब विकास है और आधुनिकता भी।

🙏🏻


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