भारत माता की जय बोलने के विचार की प्रासंगिकता: एक विश्लेषण

अपने देश को अपनी माँ माननेे में क्या बुरा है?  इसमें क्या गलत है की भारत माता की जय बोली जाये?

माँ के लिए सब बराबर होते हैं

भारत माता ने अपने हर बच्चे के लिए दाना पानी का इंतजाम किया हैं।  जब हम कहतें हैं कि भारत देश हमारी माँ है तो ये स्पष्ट है की सब नागरिको का इसके संसाधनों पर बराबर का अधिकार हैं और सब बच्चे बराबर है। इस विचार से शायद किसी को दिक्कत न होगी। कम्युनिस्ट मुसलमान, दलित या नार्थ ईस्ट सबको ये बात मान्य होगी।  और इसलिए इन सब को भारत माता की जय बोलनी चाहिये।

पर क्या ये संभव है कि संसाधनों को सभी नागरिको  में बराबर बांटा जा सकता है?

शायद नहीं। 

क्यों?

......


एक मत ये भी है की माँ के सब बच्चे बराबर क्षमता के नहीं होते अतः कभी भी बराबर नहीं हो पाएंगे। 

अगर जबरदस्ती सब संसाधन बराबर बाँट भी दिए जाएँ तो भी कुछ समय में पायेंगे कि कुछ लोग उसे संजोएंगे और बढ़ाएंगे, जबकि कुछ अन्य लोग इसे खो देंगे। ऐसा सदा ही होता है और जानवरों में भी होता है अतः शायद असमानता प्रकृति की ही देन है। बस चूँकि माँ/देश जीवन दायनी हैं अतः बच्चों को कृतज्ञता दिखानी चाहिये और माँ की रक्षा हेतु उदृत रहना चाहिये और भारत माता की जय बोलनी चाहिये।


क्या ये सच है की लोगों के पास संसाधनों की असमानता उनकी क़ाबलियत का प्रतिबिंब  है?


हमारे देश में कई लोग ऐसे है जो 300 ₹ प्रति दिन भी नहीं कमाते हैं और कुछ 1 करोड़ ₹ प्रति दिन कमाते है। क्या ये 10000 गुना से ज्यादा का फर्क सिर्फ काबलियत का है?


विकास क्रम में किसी भी प्रजाति  में किसी भी गुण पर इतना फर्क नहीं दिखता। चाहे लम्बाई चौड़ाई या बुद्धि, ज्यादा से ज्यादा 10 से 20 गुना का फर्क है। ये 10000 गुना का फर्क तो across प्रजाति भी मुश्किल से ही मिलेगा। जिन लोगों में हम धन अर्जन की क्षमता में बहुत बड़ा फरक देखते हैं उन लोगों में भी अन्य किसी शीलगुण में इतना बड़ा फर्क दिखाई नहीं देता।

ये फर्क कहाँ से निर्धारित हो रहा है?

मूलतः  इंसान का आँकलन एक व्यवस्था का अंग रहते हुए ही किया जाता है अतः इस 10000 गुना के बड़े फर्क में व्यवस्था का बड़ा योगदान है। व्यवस्था निर्धारित करती है किस कार्य के कितने पैसे। मसलन बल्ला घुमाने की कला के कितने पैसे और दरांती चलाने की कला के कितने पैसे।


व्यवस्था एक ऐसे magnifying glass की तरह है जो काबलियत को कई गुना बढ़ा सकती है। जैसे अति सामान्य भी विशिष्ट योग्य हो जायेगा अगर व्यवस्था साथ होगी और विशिष्ट तो भगवान करार दे दिया जायेगा अगर व्यवस्था साथ होगी।

बिना व्यवस्था के साथ के तो अति विशिष्ट योग्यता वाला व्यक्ति भी सामान्य हो जाता है।


अतः सबसे गुणवान 'व्यवस्था का साथ' है। इसी के चलते ज्ञानी लोग सदा व्यवस्था के साथ चलने की बात करते है। चाटुकारिता का जीवन दर्शन भी इसी लिए अपार सफलताएँ दिलवाता है जिनकेे चलते ही व्यक्ति की प्रतिभाशाली होना प्रतिस्थापित होता है।


चूँकि 'व्यवस्था का साथ'' ही गुण का सबसे बड़ा आधार है अतः हर वो व्यक्ति जिसे व्यवस्था के साथ  मिल रहा है वो स्वाभाविक रूप से भारत माँ की जय बोलने का जोरदार समर्थक हैं। भारत माता की जय बोलना  व्यवस्था और उससे प्राप्त हो रहे फायदों को स्वीकार्यता प्रदान करता है और इसे पुष्ट करता है। 


गौर से देखें तो व्यापारी, सर्विस क्लास, ठेकेदार और दलाल वो समूह है जिनमे भारत माता की जय बोलने पर काफी जोर है। चूँकि सामाजिक संरचना में जातीय वर्गीकरण भी है तो उसके अनुसार ही अगड़ी जातियाँ के लोग अधिकतर भारत माता की जय पर ज्यादा जोर देते है। 


महत्वपूर्ण ये है कि भारत माता की जय का आईडिया एक ऐसा आइडिया है जिसने व्यवस्था से किसी भी कोण से लाभान्वित होने वाले लोगों को एकजुट किया है। चाहे वो अगड़े हैं, पिछड़े हैं या दलित हैं, जिसको भी व्यवस्था से फायदा हुआ वो सब भारत माता की जय बोलने को उत्साहित है। ये शायद पहली बार संभ्रांत वर्ग को एकजुटता प्रदान कर रहा है।

चूँकि जाति समूहों और सम्प्रदायों की विचारधारा का निर्धारण ये विभिन्न जातियों के elite ही करते है अतः पहली बार ये सम्भावना बनी है कि भारत माता की जय पर केंद्रित हो कर बहुत बड़े जनमानस को कम से कम वोट के लिए तो इकठ्ठा किया जा सकता है।आखिर वोट का निर्णय एक मानसिक निर्णय है, और जब आप बहुत विचारशील नहीं है तो तत्कालीन मुद्दे वोट के निर्णय में बड़े महत्वपूर्ण हो जाते है। 

फिर, चूँकि गरीब जीवन तो जी ही रहा है और परिवार सहित जी रहा है तो भारत माता की जय का नारा उसके लिए भी कुछ प्रासंगिकता तो रखता ही है कम से कम वो इस का विरोधी नहीं हो सकता।

अतः ये स्पष्ट है कि भारत माँ क़ी जय का नारा जहाँ काबलियत की पहचान में व्यवस्था के महत्व को छिपाने के काम आ रहा है वहीँ इसमें सम्भावना है की वो नागरिकों को समानता एवम् समता समझा सके।

राजनेतिक धारा अपने अनुसार भारत माता के नारे का इस्तेमाल करेगी ही। 

🙏

टिप्पणियाँ

  1. Nice explanation and who are taking big benefits and enjoying their lives in an easier way, they are the strong guiding and motivating force to rest common community. This is an obvious thing to salute and protect the mother land but some forces are trying to teach the nationalism.

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