देश की दुर्दशा और मेरा सकारात्मक व्यक्तित्व
देश मे आम आदमी के साथ क्या 2 हो रहा है आप बताते रहते है पर मुझे ये प्रासंगिक नही लगता।
मुझे तो बस अपने देश से प्यार है, और मैं इसे महान देखना चाहता हूं।
व्यवस्था की अव्यवस्था का आंकलन मुझे सुहाता नही है, अव्यवस्था के दोषी की पहचान जैसी नकारात्मक बात मेरे लिए अर्थपूर्ण नही है, और सरकार के कर्मो के बारे में तो में बिल्कुल चुप ही रहना पसंद करता हूँ।
हाँ,
अगर जनता की लापरवाही पर बात करनी चाहो, तो मेरे पास भरपूर तर्क है और मैं जोरदार दावे कर सकता हूँ।
असल मे
मेरा जीवन मेरे भाग्य से चलता है, और मेरे रिश्तेदारों और जानकारों का कॅरोना पीड़ित हो जाना या कोई और बीमारी हो जाना और उन्हें स्वास्थ सेवा न मिल पाना सब उनके पिछले जन्मों के कर्म है (शायद मैं उनके पूर्व जन्म के कुकर्मो को जान ही न पाता अगर ये मौका न आता)। इसमे सरकार या राज्य की कोई भूमिका मुझे नजर नही आती है।
में अपनी निजी जिंदगी के निर्णयों में जरूर काफी दिमाग लगाता हूँ, अच्छा और बुरा सब सोचता हूँ। समाज और वातावरण के प्रभाव मेरे अधिकतर निर्णयों के निर्धारक होते है। परंतु, देश और समाज के बारे में सोचते हुए मैं बस दिल से काम लेता हूँ।
क्योंकि सरकार और व्यवस्थापिका तो सदा परफेक्ट होती हैं इसलिए मेरी मान्यता है कि देश और समाज की सारी दुर्गति नागरिकों के चरित्र में निहित है।
इकोनॉमिक्स और गवर्नेंस सब छोटी बातें होती है, जिन्हें पलक झपकते ही बदला जा सकता है। जिस दिन नागरिकों का चरित्र सुधरा उस दिन सब बदल जायेगा। देश महान हो जाएगा।
मैं वो आदम हूँ जो सदियों से राजतंत्र में जीया है, जहाँ राजा सर्वशक्तिमान और भगवान का रूप होता था। नए राजा की स्थापना उसके शक्तिशाली होने में निहित हुआ करती थी । जो व्यक्ति बड़ी सेना संगठित कर पाता और राज्य पर काबिज हो जाता उसी में मैं बड़ी आसानी से दैवीय गुण और दिव्य व्यक्तित्व की पहचान कर लिया करता था।
जबसे लोकतंत्र आया है तब से ऐसे परफेक्ट राजा की पहचान की प्रक्रिया बाधित हुई है। चूंकि आज सेना तो निर्धारक रही नही है,अतः वाकपटुता और प्रचारतंत्र द्वारा समझाई गयी व्यक्तित्वो की महानता से ही अंदाज़े लगाता हूँ।
नीतियां क्या होती है, और लोकतंत्र में स्वस्थ संस्थाओं का आम आदमी के लिए क्या महत्व है, ये सब समझ मुझे बेमानी लगती है। में तो बस ये मानता हूँ कि एक शक्तिशाली राजा मिल जाये तो देश शक्तिशाली हो जाएगा।
ऐसे में शक्तिशाली की मेरी पहचान में वे व्यक्ति ही जगह बना पाते हैं जिनका प्रचार बहुत होता है, जो हरेक जगह विद्यमान दिखाई देते है, और जो प्रभु समतुल्य चमत्कारिक गुणों का प्रदर्शन कर रहे होते है।
चूंकि ऐसा सब बड़े पैसे से ही संभव हो पाता है, अतः बड़े पैसे वाले जिसका साथ देते है मेरा परफेक्ट नेता का चुनाव भी अक्सर उन्ही लोगों के इर्द गिर्द जा के टिकता है।
ऐसा नही है कि अव्यवस्था को मैं महसूस नही कर पाता, परंतु चूंकि मेरी राजा की समझ एक परफेक्ट व्यक्तित्व को ढूंढती रहती है, अतः व्यवस्थाओं का आंकलन करने वाले बहुत सारे लोग मुझे राजा के रूप में अपील ही नही करते और अक्सर नए राजा के चुनाव में मैं असहाय (विकल्पहीन) महसूस करता हूँ। (जबतक कोई नया अवतार मेरे सामने आ के खड़ा नही हो जाता है और अक्सर ऐसे अवतार का गठन मीडिया और पैसा ही करता है।)
सामान्य जीवन मे, किसी व्यक्ति के सुसाइड कर लेने पर मुझे बड़ा अचंभा होता है कि कोई व्यक्ति इतना असहाय कैसे हो सकता है।
परंतु
घोर अव्यवस्था के चलते पूरे समाज के मौत के आगोश में लिपट जाने को मैं राजा के चुनाव की अपनी असहायता से मुश्किल ही जोड़ पाता हूँ।
इसके विपरीत,
ऐसी परिस्तिथियों में मैं सकारात्मक होने का पूरा प्रयास करता हूँ और राजा में अपने विश्वास का और अधिक निवेश करता हूँ।
बस
उड़ता सा (अचेतन से बेवजह चेतना में आ जाता) एक सवाल अक्सर मेरे जेहन के पार निकल जाता है।
क्या मेरे जैसे सकारात्मक व्यक्तित्व का भी देश की दुर्दशा में कोई योगदान है?
और, जब भी ये सवाल कही मन मे आ जाता है तो यूँ ही बेवजह मन परेशान हो जाता है।
इसीलिए शायद,
अक्सर, सुबह उठ कर, सकारात्मक विचार करने का प्रण मैं लेता रहता हूँ।
🙏🏽
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