अवैध निर्माण: राजकाज का बेहतरीन औजार

कानून सख्त बनाइये, इतना सख्त के अगर उसका उल्लंघन हो जाये तो सब कुछ बर्बाद कर देने की ताकत रखता हो। आम आदमी, जिसे व्यवस्था की बारीकी कम ही समझ आती है, वो अक्सर इतने से ही बहुत इम्प्रेस हो जाता है।

अब कानून के पिलपिलेपन या नजरअंदाजी की प्रक्रिया शुरू कीजिए। मतलब, कानून अपनी जगह पे रहे, पर नियामक का स्मृतिलोप हो जाये और उन्हें ध्यान ही न रहे कि ऐसा कोई कानून भी है जिसके अनुपालन की जिम्मेदारी उन पर है। चूंकि स्मार्ट लोग (जिन्हें प्रैक्टिकल भी कहा जाता है) व्यवस्था के मूड पर अक्सर बारीक नजर रखते है, ऐसे में वो समझ जाते है कि अब समय है निर्माण का। 

जब  ऐसे तथाकथित 'अवैध' निर्माण जनता की नजर में आते है तो वो अक्सर स्मार्ट लोगों को कोसती है और अपने मे स्मार्टनेस की कमी पर दुखी होती है। अक्सर 'जोखिम ही जीवन है' ज्ञान की वैधता भी तभी स्थापित होती है।

जब अवैध निर्माण ठीकठाक मात्रा में हो चुका होता है तो ऐसे में राजा साहिब के जागने का वक्त होता है।


यदा 2 ही धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारतः।

अभिउथानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।


लगभग लगभग कृष्ण की तरह धर्म (कानून) की रक्षा हेतु, राजा साहिब अब दुष्टों का नाश करने निकल पड़ते है। कानून एकाएक नियामक को बड़े 2 होर्डिंग पर लिखा हुआ नजर आने लगता है और ये अचरज भी तीव्र हो उठता है कि इतना बड़ा उल्लंघन कैसे हो गया।  तब पूरे जोश के साथ अवैध निर्माण का ध्वस्तीकरण शुरू होता है।

ऐसा होने पे

1. तात्कालिक समझ और तुरंत लाभ से प्रभावित होने की मूल प्रवर्ति लिए जनता में खुशी का संचार होता है।

2. राजा कृष्ण समतुल्य विशाल व्यक्तित्व के रूप में स्थापित हो जाता है।

3.जनता में अवैध निर्माण से पैदा हुए (व्यवस्था के प्रति) अविश्वास के प्रति अविश्वास पैदा हो जाता है, जिसके चलते व्यवस्था की सब समझ गड्ड-मड्ड हो जाती हैं (कोई सुसंगत समझ बचती ही नही)। अतः ऐसे में ईश्वर की लीला के प्रति गहरा विश्वास स्थापित होता है।

4. चूंकि ऐसा तो कभी होता ही नही कि  सभी अवैध निर्माण ध्वस्त हो जाएं। ऐसे में जिनका निर्माण सुरक्षित रहता है (या रख दिया जाता है) वो जनता के बीच अतिविशिष्ट स्मार्ट के रूप में स्थापित होते हैं। वे अक्सर राजा के प्रति गहरी श्रद्धा का प्रदर्शन करते हैं जो राजा की देवतुल्यता को स्थापित करने में बड़ी  सहायता करता है।

5. इससे ये भी स्थापित होता है कि राजकाज कितना मुश्किल काम है| अस्तु प्रभु समतुल्य राजा रातदिन एक कर बड़ी मुश्किलों में जनता के हित की रक्षा कर रहा  होता है।

ऐसी शानदार व्यवस्था असल मे दो मौलिक बातों (चालाकियों) पर स्थापित होती है। एक, कुल कितना अवैध निर्माण हुआ है इसका कभी कोई आंकलन नहीं किया जाता। दूसरा, कैसे हो गया अवैध निर्माण, इसे या तो वाजिब प्रश्न ही नही माना जाता, या फिर अगर दोष दिया भी जाता है तो नियामक संस्था को प्रथम दोषी या अपराधी नहीं माना जाता।

इन दो मुख्य बातों के रहते ही व्यवस्था में चक्रीय प्रभाव आता है जिसमे बार 2 यही सब (अवैध निर्माण और उसका ध्वस्तीकरण) घटित होता रहता है और  राजकाज के उपरोक्त वर्णित अभिष्ट फल  निरंतर प्राप्त होते रहते हैं।

वैसे तो कहने को हम आधुनिक व्यवस्था को 'कानून के राज' के रूप में समझते है पर असल मे ये 'कानून (के प्रयोग) द्वारा राज' होता है, जिसमे कानून को उपरोक्त वर्णित तरीको से उपयोग में लाया जाता है।

जनता के लिए इससे बढ़िया व्यवस्था नही है। क्योंकि इस व्यवस्था में अचैवमेंट है, हर आदमी को काबलियत (सेटिंग की) दिखाने का मौका है, क्राइसिस है, दुख है, सुख है आदि। अतः पूरा रंगीन जीवन है और उसकी समझ के प्रयास की निरंतरता है (अवैध बनाम वैध और गलत बनाम सही की समझ सदा अनिश्चित रहती है।) जो जीवन को बेहद रोचक बनाती है (स्पष्ट कानून का राज शायद बहुत बोरिंग होगा)।

शासक के लिए भी ये बहुत अच्छी व्यवस्था है। क्योंकि इससे जनता के बीच व्यवस्था की एक सुसंगत और सामूहिक समझ की संभावना ही नही रहती।

अवैध निर्माण कोई अकेला भवन निर्माण ही नही है अवैध निर्माण तो व्यवस्था के हर क्षेत्र में घटित होता है और एक सी (उपरोक्त वर्णित) प्रकृति का ही होता है, अतः अंदाजा लगाया जा सकता है कि अवैध निर्माण कितना विस्तृत है और इसके कितने विशाल  प्रभाव होते होंगे। अतः कोई अतिशयोक्ति नही है अगर हम अवैध निर्माण को व्यवस्था के एक मूल दर्शन के रूप में समझ लें।

अतः

आपकी मर्जी है चाहें तो आप इस व्यवस्था में रचबस कर सभी तरह के मनोभावों का आनंद ले भरपूर जीवन जीने का अहसास पैदा करें या फिर इस तरह के लेखों के द्वारा इसका अध्ययन कर एक सूखा कुढन भरा जीवन जियें।

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