हर देशभगत को आरक्षण का विरोध करना चाहिए।
देश सशक्त हो और आगे बढे शायद यही एक सच्चे देशभगत की चाहत होती है।
देश आगे तब बढ़ेगा जब उसके संसाधनों का उचित (efficient) उपयोग होगा।
अगर हम मानव संसाधन की बात करें तो 'आरक्षण' प्रथमद्रष्टया इस एफिशिएंसी (दक्षता) के सिद्धांत से असंगति रखता है (मेरिट लिस्ट का उल्लंघन करता है), और इसीलिए देश के विकास में बाधक प्रतीत होता है । अतःव, सामान्यतः देशप्रेमी आरक्षण रुपी व्यवस्था का विरोधी करते है।
भारत मे नौकरियों में आरक्षण, शिक्षा में आरक्षण, और विधायिका में आरक्षण कुछ आरक्षण है जो अक्सर चर्चा में रहते है। परंतु यही तीन आरक्षण नही है जिनपर देशप्रेमियों को गौर करना चाहिए। अन्य कुछ गंभीर किस्म के आरक्षण भी है जो दक्षता के सिद्धान्त का घोर उल्लंघन करते है और देश के विकास में बड़ी बाधा हैं।
दक्षता के सिद्धांत को राष्ट्रीय क्रिया कलापों के मूल सिद्धांत के रूप में प्रतिस्तापित कर देने की चाहत में देशप्रेमी आजकल सरकार द्वारा पक्की नौकरी दिए जाने की नीति का विरोध करते हैं।
सरकारी कर्मचारी एक साक्षात्कार या परीक्षा देकर 30 से 40 साल के लिए देश के विकास को निर्धारित करने वाला एक महत्वपूर्ण पद अपने लिए आरक्षित कर लेते है और अपने कार्य का मोटा पैसा लेते है। पैसा तो चलो काम के एवज में मिलता है पर वो काम करें न करें पैसा उन्हें फिर भी मिलता है, और वो लाख बेईमानी करें तो भी उनका कुछ नहीं बिगड़ता।
देश ये सब झेले अगर और कोई इनसे काबिल व्यक्ति न हो। परंतु ऐसा नहीं है। इनसे लाखों लाख काबिल व्यक्ति बाहर घूम रहे हैं। अतःव दक्षता के सिद्धांत के अनुरूप निरंतर आंकलन एवम निश्चित अंतराल पर मुक्त प्रतिस्पर्धा पर सरकारी नौकरी की हिमायत दक्षता सिद्धान्त के अनुरूप है और इसीलिए देशप्रेमी पक्की नौकरी का समर्थन नही करते है।
इसी तरह के तर्क के अनुसार सामान्यतः देशप्रेमी निजी सेक्टर का पुरजोर समर्थन करते है। निजी सेक्टर में अगर कोई व्यक्ति दक्षता से काम करेगा तो वो आगे बढ़ जायेगा अन्यथा समाप्त हो जायेगा। इस प्रकार प्राइवेट सैक्टर दक्षता के सिद्धांत पर आधारित है।
यहाँ तक तो बात ठीक है पर इससे आगे प्राइवेट सेक्टर एक गंभीर आरक्षण को जन्म देता है जिसपर कभी चर्चा नही होती। प्राइवेट सेक्टर से पैदा हुई पूंजी अक्सर ऐसे लोगों को हस्तांतरित होती है जो काबिल नही होते। वे न तो कोई परीक्षा देते हैं और न ही किसी मेरिट लिस्ट में आते है।
ये घोर आरक्षण होता है जब दक्षता के सिद्धांत पर आधारित हो कर संचित की गयी पूंजी ऐसे लोगो को थमा दी जाती है जिनकी दक्षता की स्पष्ट पहचान स्थापित नही की गई है।
ये सही है कि शिक्षा , स्वास्थ, और दक्षता अर्जन हेतु पूंजी चाहिए, और इसलिए माता पिता की पूंजी बच्चों को उपलब्ध होनी चाहिए।
परंतु अगर पूँजी लाखों करोड़ रुपये में हो (जिसमे मजे से 200 पुश्ते पल जाए) तो तो ये गम्भीर आरक्षण ही हुआ। अधिकतर राष्ट्रीय संसाधन का आरक्षण, और वो भी कई पीढ़ियों के लिए आरक्षण।
वैसे भी,
जब प्रकृति जीवन को समाप्त कर नए जीवन को स्थापित करने के सिद्धान्त पर काम करती है तो फिर पारिवारिक पूंजी की सततता गैर प्राकृतिक है और दक्षता के सिद्धांत का घोर उल्लंघन है।
1. वर्तमान में पूंजी के वितरण को अगर देखें तो ऊपर के 1% आदमियों के पास 70% पूंजी है और नीचे के 50% लोग औसतन .01% या 1पैसे से कम में जीवन जी रहे है।
2. विज्ञानं के अब तक के अध्ययन कहीं ये स्थापित नहीं करते की जीनियस किसी एक समुदाय में ज्यादा पैदा होते हैं।
ऐसे में हम अपने देश के लाखों 'आइंस्टीनओ' को इस पूंजी के आरक्षण के कारण खो रहे है, क्योंकि ऐसे लोगों के पास पनप सकने भर की भी पूंजी नहीं है।
अगर किसी प्रकार ऊपर के 1% लोगों के पास उपलब्ध पूंजी का मात्र 5% भी आमजन के हित में लग जाये तो देश में से गरीबी, आवास और स्वास्थ्य की बहुत सारी समस्याएं समाप्त हो जायें और देश को प्राकृतिक रूप से विलक्षण बुद्धि के लोगों की एक बड़ी जमात उपलब्ध हो जाये, और देश एकदम से विकासपथ पर आ जाये। ऐसा होना दक्षता के सिद्धांत के पूर्णतः अनुरूप है और इसीलिए बड़ी पूंजी (सामान्यतः प्राइवेट सेक्टर से पैदा हुई) के पारिवारिक हस्तान्तरण रुपी राष्ट्रीय संसाधनों के आरक्षण को समाप्त करने पर हर देशप्रेमी को गंभीरता से विचार करना चाहिए और इसकी समाप्ति की पुरजोर हिमायत करनी चाहिए।
महत्वपूर्ण बात ये है कि अगर देश के आमजन को शिक्षा और स्वास्थ्य की समुचित व्यवस्था मिल जाए (जो पूंजी के आरक्षण के कारण संभव नही हो पा रहा है) तो ऊपर के दोनों तरह के आरक्षणों (नौकरियों आदि में आरक्षण और पक्की सरकारी नौकरी) के विरोध की आवश्यकता ही न पड़ेगी, चूँकि ये अप्रासंगिक हो जायेंगे।
बहुत सारे लोग ऐसे होंगे जिन्होंने प्रथम प्रकार के आरक्षणों पर विचार किया होगा परंतु अन्य आरक्षणों के बारे में नहीं सोचा होगा। ऐसे लोगो को 'अबोध' कहा जा सकता है।
परंतु कुछ लोग ऐसे भी मिलते है जो प्रथम प्रकार के आरक्षणों के तो घोर विरोधी होते हैं परंतु अन्य, आर्थिक और समाजिक आरक्षणों के घोर समर्थक। अब ऐसे लोग को तो धूर्तता के गुणी ही कहा जायेंगे, जो पूर्णतया अपनी ही स्थिति को पुष्ट करने के प्रयोजन में हों।
हो सकता है इनमें से कुछ जोर जोर से चिल्ला कर या बहुत कुछ बोल कर अपने आप को देशप्रेमी भी घोषित करतें हो, परंतु किसी भी सच्चे देशप्रेमी को ऐसे बहरूपियों के देश की समझ पर आरक्षण के कुत्सित प्रयास का भरपूर विरोध करना चाहिए।
🙏🏼
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