जिजीविषा और इंसान
संकल (जंजीर) से बंधी भैंस भी जीवन में खुशियों के तर्क गढ़ती होगी।
मसलन, बिना कुछ करे न्यार (चारा) मिल रहा है और लबारे (बच्चे) भी जन पा रही है।
जीवन है,
इंसान भी ऐसे ही तर्क गढ़ता है।
क्योंकि
जीवन को हर हाल में खुशी से जीना जरूरी होता है।
पर
इंसानों ने जो विकास किया है उसमें तर्कपूर्ण आंकलन और वस्तुनिष्ठ ज्ञान का बड़ा योगदान है।
पढ़े लिखो से उम्मीद होती है कि वे इंसानियत के इस पक्ष को आगे ले जाएंगे।
अगर कहीं,
पढ़े -लिखे भी जीवन की खुशी के तर्क गढ़ने में लग जाये,
तो ऐसे देश-समाज का आगे बढ़ना रूक जाता है, औऱ वो आदिम की तरफ मुड़ जाता है।
चाहे प्राइड और घृणा को पोषित करती तुलनातमक बातें हों या झूठी सकारात्मकता को पुष्ट करता ज्ञान हो, ये सब बौद्धिकता या तर्कपूर्ण आंकलन को कुंद करते हैं।
और
आज जब इन विषयों पर रेडीमेड पोस्टों की भरमार है, तो माना जा सकता है कि ये सब एक बिल्कुल व्यवस्थित प्रयास है, बौद्धिकता को कुंद करने का, और देश को आदिम समाज की ओर धकेलने का।
अतः
देश, समाज से गर लगाव हो,
या
इंसानी जीवन की बेहतरी मन मे हो,
तो इस तरह के ज्ञान का प्रतिकार कीजिये और
तर्कपूर्ण आंकलन और वस्तुनिष्ठ ज्ञान को आगे बढ़ाइए।
🙏🏽
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